Sunday, December 30, 2007

तुम से ही - जब वी मेट

न है ये पाना न खोना ही है
तेरा न होना जाने क्यूँ होना ही है
तुमसे ही दिन होता है सुरमई शाम आती है
तुमसे ही तुमसे ही
हर घड़ी साँस आती है ज़िंदगी कहलाती है
तुमसे ही तुमसे ही

आँखों मे आँखें तेरी बाहों में बाहें तेरी
मेरा न मुझमे कुछ रहा हुआ क्या
बातों में बातें तेरी रातें सौगातें तेरी
क्यूँ तेरा सब ये हो गया हुआ क्या
मै कहीं भी जाता तुमसे ही मिल जाता हूँ
तुमसे ही तुमसे ही
शोर में खा़मोशी है थोड़ी सी बेहोशी है
तुमसे ही तुमसे ही

आधा सा वादा कभी आधे से ज़्यादा कभी
जी चाहे कर लूँ इस तरह वफ़ा का
छोडे़ न छूटे कभी तोड़े न टूटे कभी
जो धागा तुमसे जुड़ गया वफ़ा का
मै तेरा सरमाया हूँ जो भी मैं बन पाया हूँ
तुमसे ही तुमसे ही
रास्ते मिल जाते हैं मंज़िलें मिल जाती हैं
तुमसे ही तुमसे ही

न है ये पाना न खोना ही है
तेरा न होना जाने क्यूँ होना ही है

गायक – मोहित चौहान
संगीत – प्रीतम
गीतकार – इरशाद कामिल

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