Friday, June 6, 2008

या रब्बा - सलाम-ए-इश्क

प्यार है या सज़ा ऐ मेरे दिल बता
टूटता क्यों नहीं दर्द का सिलसिला
इस प्यार में हो कैसे कैसे इम्तिहां
ये प्यार लिखे कैसी कैसी दास्तां
या रब्बा दे दे कोई जान भी अगर
दिलबर पे हो न दिलबर पे हो न कोई असर



कैसा है सफ़र वफ़ा की मंज़िल का
न है कोई हल दिलों की मुश्किल का
धड़कन धड़कन बिखरी रंजिशें
सांसें सांसें टूटी बंदिशें
कहीं हर लम्हा होंटों पे फ़रियाद है
किसी की दुनिया चाहत में बर्बाद है
या रब्बा ...


कोई न सुने सिसकती आहों को
कोई न धरे तड़पती बांहों को
आधी आधी पूरी ख़्वाहिशें
टूटी फूटी सब फ़रमाइशें
कहीं शक है कहीं नफ़रत की दीवार है
कहीं जीत में भी शामिल पल पल हार है
या रब्बा ...

न पूछो दर्दमंदों से हंसी कैसी ख़ुशी कैसी
मुसीबत सर पे रहती है कभी कैसी कभी कैसी
हो रब्बा रब्बा रब्बा हो रब्बा

गायक – कैलाश खेर
गीतकार – समीर
संगीत – शंकर, ऐहसान, लॉय

1 comment:

Arun Aditya said...

न पूछो दर्दमंदों से हंसी कैसी ख़ुशी कैसी
मुसीबत सर पे रहती है कभी कैसी कभी कैसी