तुमको पाया है तो जैसे खोया हूँ
कहना चाहूँ भी तो तुमसे क्या कहूँ
किसी ज़बान में वो लफ़्ज़ ही नहीं
कि जिनमें तुम हो क्या तुम्हें बता सकूँ
मैं अगर कहूँ तुमसा हसीं
कायनात में नहीं है कहीं
तारीफ़ ये भी तो सच है कुछ भी नहीं
शोखियों में डूबी ये अदाएं
चेहरे से झलकी हुई है
ज़ुल्फ़ की घनी घनी घटाएं
शाने से ढलकी हुई है
लहराता आँचल है जैसे बादल
बाहों में भरी है जैसे चाँदनी
रूप की चाँदनी
मैं अगर कहूँ ये दिलकशी
है नहीं कहीं न होगी कभी
तारीफ़ ये भी तो सच है कुछ भी नहीं
तुम हुए मेहरबां तो है ये दास्तां
अब तुम्हारा मेरा एक है कारवां
तुम जहां मैं वहां
मैं अगर कहूँ हमसफ़र मेरी
अप्सरा हो तुम या कोई परी
तारीफ़ ये भी तो सच है कुछ भी नहीं
गायक – सोनू निगम
गीतकार – जावेद अख़्तर
संगीत – विशाल-शेखर
Friday, March 7, 2008
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