पहली नज़र में कैसा जादू कर दिया
तेरा बन बैठा है मेरा जिया
जाने क्या होगा क्या होगा क्या पता
इस पल को मिल के आ जी लें ज़रा
मैं हूँ यहाँ तू है यहाँ मेरी बाँहों में आ आ भी जा
ओ जानेजाँ दोनों जहाँ मेरी बाँहों में आ भूल जा
ओ जानेजाँ दोनों जहाँ मेरी बाँहों में आ भूल जा
Baby I love you, baby I love you, baby I love you, baby I love you so
Baby I love you, O I love you, I love you so baby I love you
हर दुआ में शामिल तेरा प्यार है
बिन तेरे लम्हा भी दुश्वार है
धड़कनों को तुझसे ही दरकार है
तुझसे राहतें तुझसे चाहतें
तू जो मिली इक दिन मुझे
मैं कहीं हो गया लापता
ओ जानेजाँ दोनों जहाँ मेरी बाँहों में आ भूल जा
ओ जानेजाँ दोनों जहाँ मेरी बाँहों में आ भूल जा
कर दिया दीवाना दर्द-ए-ख़ास ने
चैन छीना इश्क के एहसास ने
बेख़्याली दी है तेरी प्यास ने
छाया सुरूर है कुछ तो ज़रूर है
ये दूरियां जीने ने दें
हाल मेरा तुझे न पता
ओ जानेजाँ दोनों जहाँ मेरी बाँहों में आ भूल जा
ओ जानेजाँ दोनों जहाँ मेरी बाँहों में आ भूल जा
Baby I love you, baby I love you, baby I love you, baby I love you so
Baby I love you, O I love you, baby I love you, I love you
गायक – आतिफ़ असलम
गीतकार – समीर
संगीत – प्रीतम
Sunday, June 8, 2008
Friday, June 6, 2008
या रब्बा - सलाम-ए-इश्क
प्यार है या सज़ा ऐ मेरे दिल बता
टूटता क्यों नहीं दर्द का सिलसिला
इस प्यार में हो कैसे कैसे इम्तिहां
ये प्यार लिखे कैसी कैसी दास्तां
या रब्बा दे दे कोई जान भी अगर
दिलबर पे हो न दिलबर पे हो न कोई असर
कैसा है सफ़र वफ़ा की मंज़िल का
न है कोई हल दिलों की मुश्किल का
धड़कन धड़कन बिखरी रंजिशें
सांसें सांसें टूटी बंदिशें
कहीं हर लम्हा होंटों पे फ़रियाद है
किसी की दुनिया चाहत में बर्बाद है
या रब्बा ...
कोई न सुने सिसकती आहों को
कोई न धरे तड़पती बांहों को
आधी आधी पूरी ख़्वाहिशें
टूटी फूटी सब फ़रमाइशें
कहीं शक है कहीं नफ़रत की दीवार है
कहीं जीत में भी शामिल पल पल हार है
या रब्बा ...
न पूछो दर्दमंदों से हंसी कैसी ख़ुशी कैसी
मुसीबत सर पे रहती है कभी कैसी कभी कैसी
हो रब्बा रब्बा रब्बा हो रब्बा
गायक – कैलाश खेर
गीतकार – समीर
संगीत – शंकर, ऐहसान, लॉय
टूटता क्यों नहीं दर्द का सिलसिला
इस प्यार में हो कैसे कैसे इम्तिहां
ये प्यार लिखे कैसी कैसी दास्तां
या रब्बा दे दे कोई जान भी अगर
दिलबर पे हो न दिलबर पे हो न कोई असर
कैसा है सफ़र वफ़ा की मंज़िल का
न है कोई हल दिलों की मुश्किल का
धड़कन धड़कन बिखरी रंजिशें
सांसें सांसें टूटी बंदिशें
कहीं हर लम्हा होंटों पे फ़रियाद है
किसी की दुनिया चाहत में बर्बाद है
या रब्बा ...
कोई न सुने सिसकती आहों को
कोई न धरे तड़पती बांहों को
आधी आधी पूरी ख़्वाहिशें
टूटी फूटी सब फ़रमाइशें
कहीं शक है कहीं नफ़रत की दीवार है
कहीं जीत में भी शामिल पल पल हार है
या रब्बा ...
न पूछो दर्दमंदों से हंसी कैसी ख़ुशी कैसी
मुसीबत सर पे रहती है कभी कैसी कभी कैसी
हो रब्बा रब्बा रब्बा हो रब्बा
गायक – कैलाश खेर
गीतकार – समीर
संगीत – शंकर, ऐहसान, लॉय
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